जयति भारती
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जिन्हें न प्रेम माटी से , उन्हें बेजान लिखता हूँ।
मैं संकल्पों में डुबो करके, अरमान लिखता हूँ।।
परहित में जिया जीवन,वही तो सत्यत: जीवन,
भारती को प्रणति लिखकर हिंदुस्तान लिखता हूँ।।
ये उर्वर भूमि पराक्रम की, लिखी बलिदान गाथाऐं।
व्याधियाँ रास्ता देतीं नमन करती हैं बाधाऐं।।
तुंग ऊर्ध्व हो किंचित या सागर हो अचल गहरा,
विजय या वीरगति अंगी, स्वयं के कर्म उपमाऐं।।
*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*
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