*कान्हा*
कान्हा तेरी लीला की है पुकार,
तुम ले लो फिर धरा पर अवतार।
सब करते अब पीछे धना धन ,
फूल रहे है यहां- वहाँ दुर्योधन।
कान्हा तू लेकर आया था एक सन्देशा,
करते यहाँ धरा पर लोग पैसा- पैसा।
कान्हा तुमने केवल पांच गाँव मांगे,
सन्तोष नही , रिश्वत के पीछे भागे।
नारी की दुर्दशा ऐसी कैसी यहां ,
कोई द्रोपदी तो सूर्पणखा यहां।।
कान्हा सभा में विकराल रूप बताया,
अब देखो यहाँ डोंगी बाबा की माया।
कान्हा तुमने द्रोपदी का चीर बढ़ाया
अब बेशर्म अध वस्त्र पैशन छाया।
कान्हा तुम वन में जाकर चराई गैया,
लुप्त बैलगाड़ी भटकी बछिया, गैया ।
न्याय पर बंधी है नयनों में यहाँ पट्टी,
गांधारी सी सत्ता लोकलुभावन सस्ती।
डसते आंतकी यहाँ जहरीला क्रंदन
आजाओ कान्हा फिर करो मन्धन।
सत्य ,असत्य पाप पुण्य का है तोल,
मंदिरों में चढ़ता इसका यहां है मोल।
तुमने गरीबी से प्रेम से निभाई दोस्ती
जिसके पास पैसा उससे यहां दोस्ती।
भले यह युग नही वंशी ले चले आओ
फिर से गीता का ज्ञान उपदेश सुनाओ
अब तो आओ देवकी नंदन द्वारकाधीश
मूर्ख ताल पड़ा चरणों मे दे दो आशीष।
*✒प्रवीण शर्मा ताल*
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