प्रवीण शर्मा ताल

*मोहब्बत की फिर से हम सरिता बहाएँ*


रूठो मत चलो मेरे साथ ,,
पकड़ो तो सही मेरा हाथ।
प्रकृति के तराने में,
हम फिर से * गुनगुनाएँ*
मोहब्बत की सरिता
 हम फिर से  बहाएँ।।


उजड़े चमन में,
 खुशी के फूल,
 मुरझा जाते हैं।
डाली डाली पर 
ये भँवरे  दूर
चले जाते हैं।
चलो इनको हम 
फिर से बुलाएँ
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।।


चार दिन की चाँदनी में 
क्या रहेगा खुश सवेरा ,
 चुनकर तिनका- तिनका
बनाएँ फिर हम बसेरा,
देकर दाना-पानी,
 बेजुबान पँछी को
 फिर से हम सहलाएँ।
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।।


 तुम्हरा पहले हँसना बिंदास रहा,
तुम पर मेरा हमेशा  विश्वास रहा,
आस के गोते में जरा डूबकर 
चिकनी चुपड़ी  हम भूल जाएँ।
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।।


हिन्द देश के भारत में
प्रीत की डोर चलाएँ,
बाँध कर भीनी- भीनी 
माटी को केसर की
 क्यारी में महकाएँ।
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।



*✒प्रवीण शर्मा ताल*


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