प्रवीण शर्मा ताल*

*घूँघट में चाँद*


घूँघट में चाँद छिपाए बैठी हो,
छत पर बेताब टहलाएं बैठी हो


क्या खता की  क्या भूल हुई जो,,,,,
इश्क हमसे गैर की पायल पहनाएं बैठी
 हो।


अमावस्या की रात कहां है ,,
पूनम सा चहेरा मुरझाए बैठी हो


घूँघट थोड़ा उठाओ जरा,,,,
तीखी नजरों से तीर चलाएं बैठी हो।


पलको से चाँदनी का दीदार होगा ,,,
बादलो के पीछे ठहराए बैठी हो।


क्यो रूठी हो  चाँदनी हमसे ,,,,,
ताल  का दामन तोड़ाए बैठी हो।


मैं जमीं से निहारता रहा चाँदनी तुझे
तू  घूँघट में चाँद को छिपाए  बैठी हो।



✒प्रवीण शर्मा ताल


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