प्रवीण शर्मा ताल*

*है कहां जिंदा ईमान अब?*



अंधे बनके रह गए कानून
प्रजातन्त्र में फैला हनीमून
लोकलाज की बनी सत्ता
झूठ बिका इतना सस्ता।


तोड़ दी न्याय की कमान जब
है कहां  जिंदा ईमान अब।


निर्भया को नही मिला न्याय
गढ़ा कहां अन्याय का डंडा,
खुश हो रहा वो अब  दरिंदा
 लटका कहां  फांसी का फंदा।


 है  कहां रक्षक संग्राम जब,
है कहां जिंदा ईमान अब ।


जनगणमन अधिनायक गाते है
जय जवान का नारा गुँजाते है
 न्याय नही मिला उस माँ  को
मोहरा बना के आँसू बहाते है।


है कहां जिंदा  विधान अब
 है कहां जिंदा ईमान अब ।


शिक्षा दीक्षा सब धूमिल हो गई
प्रजातन्त्र में कहाँ भूल हो गई
 देकर रिश्वत का लालच  उसे
सत्य के दरवाजे पर धूल हो गई।


न्याय बिका खुलेआम जब,
है कहां जिंदा ईमान अब।


सीता ,सावित्री ,द्रोपदी अपनी
लुटती अस्मिता को पुकार रही 
उड़ते उड़ते दुर्वशासन ,रावण से
चोरहे पर अपनी जान छुड़ा रही।


खोज रही नारी सम्मान जब,
है कहां जिंदा ईमान अब ।।


पैसा रुपया बाजार गर्म है
पांडाल में दिखावा कर्म है
क्या यही इंसानियतता का
बाबा साधु  इंसान का धर्म है।


चीत्कार बढा  परवान जब
है कहां  जिंदा ईमान अब ।


 


*✒प्रवीण शर्मा ताल*


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...