प्रिया सिंह लखनऊ

हिस्से में मेरे चार कोने का मकान नहीं आता
थका बहुत पर सफर में मेरे मचान नहीं आता


बुलन्दी कितनी....हासिल कर लें सब इन्सान 
छुअन महसूस कराने वो आसमान नहीं आता


दीमकों ने खोखला बना दिया जिस्म को सखी
के फिर से मजबूत करने का अरमान नहीं आता


बहुत सम्भाल कर रखते हैं "गुल" तितलियों को
अब तो नजरों में बेनज़ीर के सम्मान नहीं आता


बहुत कम कहना है मुझे समझना बहुत है तुम्हें 
हर शब्दों के लिफाफे में वेद- कुरान नहीं आता


 



Priya singh


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