प्रिया सिंह लखनऊ

जाने क्या था जो मुझमें बदलता चला गया
कागजों पर मेरा एहसास ढलता चला गया 


मैंने कई अरमान को दफना रखा था दिल में 
एक ख्वाब जो जहन में मचलता चला गया


उरूज जो हैं उनसे सीख ले लो सफर से यूँ
जो चला इद्राक होकर वो चलता चला गया


बदगुमानी की दुहाई बहुत दे देते हो यकीनन 
जो गया है सफर से वो हाँथ मलता चला गया 


कहीं इनाद बढ़ ना जाये नज़ाकत का सबा में 
बस कस़ीदे दस्तूर का फिर संभलता चला गया 


उरूज-महानता
इद्राक- समझ,बुझ 
इनाद- विरोधता
नज़ाकत- सच्चाई 
क़सीदे-तारीफ
दस्तूर- नियम



Priya singh


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