प्रिया सिंह लखनऊ उसके हिस्से की मैं हक में दुआएं मांग लाती हूँ 

प्रिया सिंह लखनऊ


उसके हिस्से की मैं हक में दुआएं मांग लाती हूँ 
हो तैनात काल तो मैं हक में बलाएँ मांग लाती हूँ  


बेसबर जिन्दगी बस रोज बदलती रहती है प्रिया 
मैं उस रब से अब क्या क्या बताएं मांग लाती हूँ 


वो राह जिसमें हमसफ़र कोई नहीं होता शायद 
ऊपर वाले से वहाँ उसकी सदाएं मांग लाती हूँ 


गुस्ताखी कर ली तुझसे अब मोहब्बत कर के तो
तेरे दामन में सिमटी सारी खताएं मांग लाती हूँ 


वो अंदाज फरेबी मेरे मालिक की अदा बन गई 
जरा उस रब से अपने लिए वफाएं मांग लाती हूँ 


बहुत से तौर बाकी हैं मेरे अंदरखाने में यकीनन 
दफन करने खुदी को लहद से अदाएं मांग लाती हूँ 



Priya singh


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...