प्रियव्रत कुमार बांका (बिहार)

प्रियतम
==========


मुझे ठुकरा प्रियतम चली
अपने साजन के संग में,
जा प्रियतम तू खुश रहना 
अपने साजन के आँगन में।


हम तो जी लेंगें प्रियतम
तुम्हें देख कर शीशे में,
तू भी जी लेना प्रियतम
हमें देख अपने साजन में।


शायद मैं रहूं या न रहूं
प्रियतम तुम्हारे खयालों में,
पर तुम्हें देखा करता हूँ प्रियतम
मैं अपने दिल के टुकड़ों में।


जब याद तेरी आती प्रियतम
हमें इस तन्हा जीवन में,
पी जाता हूँ सारा मैखाना
 देख तुम्हारा चेहरा बोतल में।


अचानक मैखाना बोलती प्रियतम
तू नहीं अब उसके यादों में,
फिर बोतल लिये क्यूँ पड़ा प्रिय
बेबफा खातिर दलदल के आँगन में।


बेबफा कह नहीं सकता प्रियतम
तुम्हें मैं अपने पुरे जीवन में,
क्या मजबूरी थी तेरे संग प्रियतम
जो गिराया मुझको इस दलदल में।


आपका:--
प्रियव्रत कुमार
बांका (बिहार)
9102356951
Priybrat813202@gmail.com


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...