*"गुंजन"* (दोहे)
-------------------------------------------
*वन-वन उपवन उल्लसित, मद-मधुरिम मधुमास।
अलि-गुंजन आलाप-लय, प्रगटे पुलक-प्रभास।।
*रंगित कुंजन रंग नव, स्वर्णिम बौर रसाल।
पहल-पुलक पिक पीकना, मधुकर-गुंजन ताल।।
*ताम्र-पीत तन श्याम छवि, गुनगुन गुंजित गान।
कनक कुसुम किसलय कली, विकसे विटप-वितान।।
*नित नवरंग निकुंज उर, अलि-मन कर गुंजार।
प्राणित पल प्रतिप्राण है, अभिनव गुंजन सार।।
*संचय नव मधु मुकुल-उर, महक मदिर मग वास।
मौन मुग्ध गुंजन गहन, नृत्य नित्य रम रास।।
------------------------------------------
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
------------------------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें