राधा चौधरी

टिमटिमाते -तारे
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
न जाने कौन है ,
जो आसमा पे बिखेर दिया
न जाने कौन है,
जो सबसे से पहले समेट लिया,
एक भी दिन न भूलें,
प्रति दिन ये प्रक्रिया जारी है,
एक भी तारे ,
न हुए इधर-उधर,
एक भी तारे गिरे नहीं,
देखूं जरा उलट -पलट
न जाने कौन.............पे बिखेर दिया।


सावन भूलें न भादों,
हर दिन ये प्रक्रिया जारी है,
शाम होते ही बिखेर देना,
सुबह से पहले समेट लेना,
एक भी तारे कम न
एक भी ज्यादा,
उल्टा प्लेट बिखेर दिया,
धिमी गति में घुमा दिया,
शाम था इधर तो ,
सुबह चला गया उधर,
न जाने कौन................पे बिखेर दिया।।


वारिश में भीगता रहता,
फिर भी खंडा वहीं पर,
कभी आंख पोछता,
‌कभी आंख मिचलाता,
कभी टिमटिमाता कभी चमकता,
फिर भी खड़ा वही पर,
बादलों के टकराव से ,
डर के सहम जाता,
बिजली की चमक से,
कस के आंखे बन्द कर लेता,
न जाने कौन................पे बिखेर देता।


आसमान पर पानी के,
धब्बे होते जगह-जगह पर,
मानो मुंह धो लेता वहीं पर,
थोड़ी बैठ लेता वहीं पर,
पानी के धब्बों के कारण,
कम दिखते जमी पर,
 पर होते उतने ही है,
जितना बिखेरा वहीं पर,
लूक छिप करने का मजा ,
सावन भादो में आता है,
टिमटिमाते तारों को गिनना ,
कितना मज़ा आता है,
न जाने कौन.....................पे बिखेर देता।


पूस माघ के महीनों में,
कितने सुंदर दिखते हैं तारें,
स्वच्छ आकाश पर,
कहीं धब्बों का न निशान,
सारी रौशनी ठंड में ,
उड़ेल देते हैं तारे,
प्रचंड़ राक्षस के आक्रमण,
 से भी शांत डिगे रहते हैं तारे,
न कुछ ओढ़े न कुछ पहने 
खाली बदन शैर करते हैं तारे,
न जाने कौन ‌‌........................पे बिखेर दिया।
बड़े बुजुर्ग कह गए
                           बच्चों को ठंड नहीं लगती,
सही भी है, कितना पहनाव कपड़े
                          उतार देते हैं बच्चें
मां भी दौड़ती रहती 
                        अपने बच्चों के पिछे -पिछे,
चंदा मां भी दौड़ती है ,
                            तारों के पिछे -पिछे,
रात भर चलते हैं तारे
                         दिन में थक के सो जाते हैं,
न जाने  कौन..................…....बिखेर दिया।
��


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...