राजेंद्र रायपुरी।

एक ग़ज़ल, 
             आपकी नज़र  - - 


थी नहीं हमको ख़बर कुछ कब गए वो छोड़कर।
हैं  वो  मेरे  साथ  हम  ये  सोच कर  चलते  रहे।


वाकया  वो  याद  हमको  ये न कहना  झूठ  है।
चल दिए सपने  दिखाकर  हाथ  हम  मलते रहे।


वो  न  आए   करके  वादा  मानिए   मेरा  कहा,
आएँगे  वो  सोचकर  हम  बन  शमा जलते रहे।


क्या  ख़बर  थी  भूल  जाएँगे हमें वो  इस तरह,
याद  में  उनकी   हमेशा  मोम   सा  गलते  रहे।


दिल दिया हमने  जिन्हें था तोड़ उनने ही दिया।
तुम  हमारी  जान  हो  कहकर हमें  छलते  रहे।


बेरहम   हमने  न  देखा  ऐ  ख़ुदा  ऐसा   कभी,
ये न  पूछा  अश्क़  क्यूँ  ये आँख से  ढलते रहे।


चाह  मेरी   थी  कि  सारे  ख़्वाब  पूरे  हों  मगर,
ज़िदगी  भर  ख़्वाब  मेरी  आँख  में  पलते  रहे।


                      ।।राजेंद्र रायपुरी।।


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