राजेंद्र रायपुरी

एक ग़ज़ल - 
( 122-122-122-122)


न मसलों कभी  यार कच्ची कली को।
खिलेगी तो ख़ुशबू  ही  देगी गली को।


न  कोई  सहारा  है उसका  जहां  में, 
मदद को उठे हाथ लड़की भली  को।


मुक़द्दर  की  मारी  है  कहते सभी ये,
सताओ न तुम यार  नाज़ो  पली  को।


न बातें  करो  तुम  मुहब्बत की  यारों, 
लगेगा बुरा सच में उस दिल जली को।


है चाहत  सभी की हो गोरी ही बीबी, 
न चाहे सुना कोई  उस  साँवली  को।


ख़ुदा ने  है  मारा  न  मारो  उसे  तुम,
चहकने  दो थोड़ा तो उस बावली को।


हैं कहते सभी का वो रखवाला है फ़िर,
ये ही  याद आई  न क्यूँ उस अली को।


              (राजेंद्र रायपुरी)


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