राजेंद्र रायपुरी।

एक ग़ज़ल, आपकी नज़र - - 


बहाने   बनाकर  न  दिल  को  चुराओ,
कली  हूँ  न भँवरा  सुनो बन के आओ।


रखोगे  कहाँ  तुम  चुरा  मेरे दिल  को,
जहां  में  जगह  कोई  हो  तो बताओ।


है फूलों  से  नाज़ुक सुनो मेरा दिल ये,
समझ   हीरे-मोती  न  थैली  मँगाओ।


सजाया-सँवारा  है  दिल  को जतन से,
मिला  दोगे   मिट्टी  न  इसको चुराओ।


बने हो  जो आशिक़  तो  रस्में निभाओ,
मेरे दिल को भाए वो दिल तो दिखाओ।


न  शीशे  की  पत्थर  से  यारी लगाओ,
निभी   ऐसी   यारी   कहाँ   है  बताओ।


शमा   बन  जलूँगी   ज़माने  में   मैं  तो,
अगर  जल  सकोगे  तभी  पास  आओ।


                ।।राजेंद्र रायपुरी।।


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