कबित्त रसिक न राम पद नेहू।
तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू।।
भाषा भनिति भोरि मति मोरी।
हँसिबे जोग हँसे नहिं खोरी।।
प्रभुपद प्रीति न सामुझि नीकी।
तिन्हहिं कथा सुनि लागिहि फीकी।।
हरि हर पद रति मति न कुतरकी।
तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की।।
।श्रीरामचरितमानस।
जो न कविता के रसिक हैं और न जिनका प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में प्रेम है उनके लिए भी यह कविता सुखद हास्यरस का काम करेगी।सर्वप्रथम तो यह भाषा की रचना है, दूसरे मेरी बुद्धि भोली है।अतः यह हँसने योग्य ही है अर्थात इस पर हँसने में उन्हें कोई दोष नहीं है।जिन्हें न तो प्रभु के चरणों में प्रेम है और न अच्छी समझ ही है उनको यह कथा सुनने में फीकी लगेगी।जिनकी भगवान विष्णु और भगवान शिवजी के चरणों में प्रीति है और जिनकी बुद्धि कुतर्क करने वाली नहीं है उन्हें श्रीरघुनाथजी की यह कथा मधुर अर्थात प्रिय लगेगी।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
उपरोक्त चौपाई में गो0जी का यह आशय है कि इस ग्रँथ से सभी प्रकार के पाठकों व श्रोताओं को कुछ न कुछ उनकी पात्रता के अनुसार मनोरंजन व सुख की सामग्री अवश्य मिलेगी।कविता के रसिकों को हास्यरस से सुख मिलेगा क्योंकि यह हँसने योग्य है।सँस्कृत भाषा के अभिमानी विद्वान भी इसे साधारण भाषा में जानकर हँसेंगे।जो प्रभु के भक्त नहीं हैं और जिनकी समझ भी अच्छी नहीं है उन्हें न तो भक्ति रस का सुख मिला और न ही कविता का रस ही मिला।भगवान विष्णु और भगवान शिवजी में जो भेद या ऊँच नीच की कल्पना नहीं करते हैं उन्हें यह कथा अवश्य ही प्रिय लगेगी क्योंकि इस कथा के मूलरचनाकर भगवान शिव जी ही हैं।यथा,,,
रचि महेस निज मानस राखा।
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा।
तातें रामचरित मानस बर।
धरेउ नाम हिय हेरि हरष हर।
इस ग्रँथ में प्रारम्भ में शिव चरित्र है और बाद में प्रभु श्रीराम जी के चरित्र का वर्णन है अतः शैव व वैष्णव सभी भक्तजनों को यह कथा अवश्य ही मधुर अर्थात प्रिय लगेगी,ऐसा गो0जी को विश्वास है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्ज बिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
रामचरित मानस को सभी पसन्द करंगे आनन्दित होंगे बलराम सिंह यादव पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इन्टरकालेज खमरिया पण्डित धर्म एवम अध्यात्म व्यख्याता
Featured Post
दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...

-
मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
-
सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
-
नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें