माँ वाणी स्तवन
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दो शुद्ध वृत्ति बुद्धि निर्मल ज्ञानधन माँ शारदे।
हो शुभम् वरदा कृपा कर पाथेय बन माँ शारदे।।
हे वीणापाणि मराल वाहिनि लेखनी शुभदा गिरा ,
पद्मासनी माँ सरस्वती मोहे ज्ञान माँ शारदे।।
मृणालिनी प्रकाशिनी ,लेखनी माँ शारदे ।
वीणपाणी हंसवाही , सरस्वती माँ शारदे।।
कर माल पुस्तक अभय वीणा धारती,
हे स्वरा दी जो कला सत ज्ञानदा माँ शारदे।।
✍🏻 रघुनंदन प्रसाद दीक्षित " प्रखर"
फतेहगढ फर्रूखाबाद(उ.प्र.)
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