रहें एक हम सब वतन🇮🇳 मूरख   इस   संसार  में , निर्विवेक  हम  लोग।


विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः ✊रहें एक हम सब वतन🇮🇳
मूरख   इस   संसार  में , निर्विवेक  हम  लोग।
बहकें   कौमी   भावना , राष्ट्र   द्रोह     दुर्योग।।१।।
खाने  के  लाले  पड़े , बने  क्रान्ति  का  लाल।
भड़काते  निज  स्वार्थ  में , नेता चलते  चाल।।२।।
बने  लोग  कुछ  दहशती , बेचे   लाज ज़मीर।
जला रहे  जनता  वतन, तरुणायी    तकदीर।।३। 
आज़ादी के नाम पर , साध  रहे  निज स्वार्थ।
मानवता    सम्वेदना , भूले   सब     परमार्थ।।४।।
मातृभूमि  सबसे  अहम् , रक्षण   है  कर्तव्य।
सौ जीवन अर्पण उसे , स्वाभिमान ध्यातव्य।।५।।
मिले साथ सरकार हम , करें  राष्ट्र   मजबूत।
करें नाश दुश्मन वतन , जो  भी  देश  कपूत।।६।
मँहगाई   है  आसमां  , जनता   है    मज़बूर।
सजीं   चुनावी     दंगलें , राजनीति    दस्तूर।।७।।
गाली   दंगा   नफ़रतें , मेला   सजी   चुनाव।
जनमत  है   क्रेता  यहाँ , दे  नेता  हर  भाव।।८।
लोकतंत्र  रक्षक   यहाँ , चले  दाँव पर  दाँव।
लोक   लुभावन   तोहफे, बाँटे   पूर्व  चुनाव।।९।।
मिली जीत  चुनाव रण,  सत्ता  पा  सरताज।
भूलें    वादाएँ   सभी , जनता  की  आवाज।।१०।।
सत्ता पा  ऐय्याशियाँ ,  संचय  धन   भण्डार।
लूटे जनता  कोष को , दर्शन  हो       दुस्वार।।११।।
हो उदार इन्सानियत , नीति  प्रगति  हो ध्येय।
शिक्षा समरसता प्रकृति, नेता जनमन    गेय।।१२।।
धीर  वीर    गंभीर  हो , राष्ट्रभक्ति  अभिप्रेत।
लोकमान्य व्यक्तित्व नित ,  निर्णेता  उपवेत।।१३।।
सच्चाई  मन  में  बसे, कर्म  शील   आधार ।
तन मन धन अर्पित वतन, हों   नेता   तैयार।।१४।। 
देश    विरोधी   ताकतें , फैले    देश विदेश।
एक रहें हम सब वतन ,कवि निकुंज संदेश।।१५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


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