रत्ना वर्मा धनबाद झारखंड

तिथि- 14/02/2020 
दिन- शुक्रवार 
नमन भारत - अभिनंदन वंदन प्रणाम संग 
सभी को सुप्रभात ....
 मेरी कलम से ....
  " नतमस्तक हूँ पुलवामा " 
                ये सोच कर सैनिक थें चले,
                खैरियत वतन का रहे ।
               कारवां चली ही थी कि हाय ,
               साँस शोर कर उठी ....सिसकियों भर उठी !!
                और हम लुटे -लुटे वक्त से पिटे- पिटे 
                विक्षिप्त  प्राण  देखते रहें ......
              कारवां गुजर गया आसमान देखते रहें  ...


 धूप भी खिली न थी,
कि हाय शहर धुआँ-धुआँ हुआ
लाशें पर लाशें  पटी ...ये कैसा हादसा हुआ!
दुश्मनों की चाल का ये  कैसा सिलसिला हुआ....
क्या शबाब था कि , लहू-लहू पिघल उठा ....
स्वप्न  सारे ढेर हुए, आसमां बिलख उठा...
और हम लुटे -लुटे वक्त से पिटे- पिटै 
विक्षिप्त प्राण देखते रहें ....
कारवां गुजर गया आसमान देखते रहें!!
                         
                    नज़र -नज़र को थी आंक रही 
         हाय ये किसकी नज़र लगी ....
         दुश्मनों को इनकी कैसै ख़बर लगी !
        यहाँ चल रही थी  देशद्रोहियों की निति!
        ईमानदारी में शंका हुई, भाईचारे में हो गई क्षति..
        और हम लुटे लुटे वक्त से पिटे-पिटे ...
        विक्षिप्त प्राण देखते रहें .....कारवां गुजर गया 
              हम आसमान देखते रहें ....


वो कैसी घड़ी थी कि  ....
जिस्म के टुकड़े टुकड़े हुए ...
किसी के सर किसी के हाथ पाँव
 के चिथड़े हुए ...
प्रिय न प्रिय को देख सकी...
हाय भाव में गहन रहे .....
पिता की गर्व से फूली छाती ,
माँ ने कहा - आज हम धन्य हुए ....
और हम लुटे लुटे वक्त से पिटे-पिटे 
विक्षिप्त प्राण देखते रहें ...कारवां गुजर गया 
आसमान देखते रहें ....
                     भारत माँ के वीर सपूतों को 
                             शत- शत नमन जय हिंद!!
रत्ना वर्मा 
स्वरचित मौलिक रचना 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
204अम्बिका अपार्टमेंट 
धनबाद झारखंड


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