गीत
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प्रदत्त पंक्ति --
मोहन मधुर बजाए बंशी ,
प्रेम मगन हो इतराऊँ ।
मात्रा भार -- 16 , 14 .
धुन कोई भी गाये बंशी ,
मैं भी संग सदा गाऊँ ।
मोहन मधुर बजाए बंशी ,
प्रेम मगन हो इतराऊँ ।।
लहरें मन में उठें तरंगित ,
झूम झूम लो उतरातीं ।
मचल मचल कर अब देखो तो ,
अपना ही हाल सुनातीं ।
मैं भी लहरा कर सुन लो अब ,
डगमग बोली मैं जाऊँ।।
मोहन मधुर बजाये बंशी ,
प्रेम मगन हो इतराऊँ ।।
मन में मोहन बसते सुन लो ,
सदा रहें बातें यूँ ही ।
धड़कन में बसते हैं मोहन ,
गाते रहते बस यूँ ही ।
रूठें नहीं कभी भी गिरिधर ,
रूठें तो अभी मनाऊँ ।।
मोहन मधुर बजाये बंसी ,
प्रेम मगन हो इतराऊँ ।
प्रेम पंथ ही जानूँ मैं तो ,
और न जानूँ अब राहें ।
मैं उबरूँ तब ही तो सुन लो ,
मोहना थाम लो बाँहें ।।
अधरों से मुरली अभी लगा ,
धुन मधुर सुन मै बजाऊँ।
भक्ति भावना भर दो अब तो ,
भव सागर मैं तर जाऊँ ।।
मोहन मधुर बजाए बंशी ,
प्रेम मगन हो जाऊँ ।।
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