रीतु देवी"प्रज्ञा"         दरभंगा, बिहार

विषय:-बचपन
दिनांक:-07-02-2020
बचपन के दिन सुहाने


बचपन के थे दिन सुहाने,
गीत गाते थे हम मस्ताने,
भेदभाव का नहीं था नामोनिशान 
मोहमाया से थे हम अनजाने।
चंदा मामा लगते प्यारे
नित्य शाम को बाट निहारे
मन भाती थी पूनम रौशनी
रात्रि भी खेलते भाई-बहन सारे।
झट चढ जाते पेड़ों पर,
नजर रहते मीठी सेबों पर,
अपना-पराया का नहीं था ज्ञान
विश्वास करते श्रेष्ठजनों के नेहों पर।


हम भींगा करते छमछम बूंद में,
हम खोए रहते भीनीभीनी सुगंध में,
चंचलता रहता तन मे हरदम
परियों को देखा करते गहरी नींद में।
बचपन के थे दिन सुहाने ,
हर गम से थे बेगाने ,
मौज ही मौज था जीवन में
माँ की आँचल तले थे खजाने 
           रीतु देवी"प्रज्ञा"
        दरभंगा, बिहार
    स्वरचित एवं मौलिक


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...