सन्दीप सरस-9140098712

✍ *बुजुर्गों की पीड़ा से सीधा संवाद-प्रयास कैसा है, प्रतिक्रिया अपेक्षित*✍
रोज रोज का झगड़ा झंझट ठीक नहीं,
मुन्ने की अम्मा! घर वापस लौट चलो। 


भले बहू की लाख हिकारत सह लेते,
बेटे की मजबूरी सही नहीं जाती।
जब से हम उसके करीब आए, तब से-
दोनों में यह दूरी, सही नहीं जाती।


बेटे को दुविधा में डालें, ठीक नहीं,
कष्ट उसे होगा, पर वापस लौट चलो।1।


जीवन में हमने सम्बन्ध बनाये कब,
अवसरवादी सुविधा के अनुपातों में।
हम रिश्तो की गर्माहट के आदी हैं,
लोग लगे हैं घातों में प्रतिघातों में।


अनचाहे रिश्तों को ढोना ठीक नहीं,
जीने का है अवसर, वापस लौट चलो।2।


गाँव गली की भाषा के हम विज्ञानी,
महानगर के अंकगणित से हार गए।
शून्य शून्य का हाय गुणनफल शून्य रहा,
जाने क्यों हम छोंड़ गाँव घर द्वार गए।


आज हमारा समय बदलते ही उनके,
बदल गए हैं तेवर, वापस लौट चलो।3।


🔴सन्दीप सरस-9140098712
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