*श्रोता बन गया आशिक*
विधा : कविता
मिले हम अपनी कविता,
गीतों के माध्यम तुमसे।
परन्तु ये तो कुछ,
और ही हो गया।
पढ़ते पढ़ते मेरी गीतों के, तुम प्रसन्नसक बन गये।
और दिल ही दिल में,
हमें चहाने लगे।
और अपने कमेंटो से,
हमें लोभाने लगे।।
दिल से कहूँ तो मुझे भी,
पता ही नही चला इसका।
और हम भी तेरे कमेंटों, के दीवाने हो गए।
अब तो तेरा मेरा हाल,
कुछ इस तरह का है।
जो एकदूसरे को देखे बिना।
हम दोनों अब रह सकते नहीं।।
कितना दिल से तुमने हमें
पढ़ा।
ये तेरे चेहरे से समझ आता है।
दिल की गैहराइयों से देखे तो।
तुम में हमें मोहब्बत नजर आती है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
17/02/2019
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