*घर में है....*
विधा : कविता
आज घर का माहौल,
बदला-2 सा दिख रहा है।
घर में कोई तूफान,
सा छा गया है।
यह मुझे घर का,
माहौल बता रहा है।
और प्रिये तेरी नजरो में,
भी मुझे नजर आ रहा है।
लगता है पूरी रात,
तुम सोये नहीं हो।
तभीतो चेहरा मुरझाया हुआ,
और घर बिखरा हुआ है।।
कोई बात तेरे दिलमें,
बहुत चुभ रही है।
जो तेरी दिलकी धड़कनों
को,
तेजी से बढ़ा रही है।
जिससे तेरे चेहरे की,
रंगत उड़ी हुई है।
और मेरी बैचेनी को,
बढ़ा रही है।।
कमाई के चक्कर में,
घर से बाहर चल रहा हूँ।
जिसके कारण परिवार से,
दूर होता जा रहा हूँ।
जब से वापिस आया हूँ,
घर में सन्नाटा छाया है।
जो मुझे अपनी गलतीयो का,
एहसास करा रहा है।।
इस बार घर आने में,
अधिक समय हो गया।
जिससे मिलने नहीं आ सका।
और उसकी इतनी बड़ी सजा,
खुदको क्यों दे रही हो प्रिये।
जबकि गलती सारी मेरी है,
तो सजा मुझे मिलना चाहिए।
अब हो रहा है मुझे अपनी,
गलतियों का एहसास।
क्या पैसे से पहले है या,
घर परिवार की खुशाली।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
25/02/2020
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