गुलाब हो या दिल*
विधा : कविता
मेरे दिल में अंकुरित हो तुम।
इसलिए दिल की डालियों,
पर खिलाते हो तुम।
और गुलाब की पंखड़ियों,
की तरह खुलते हो तुम।
कोई दूसरा छू न ले इसलिए,
कांटो के बीच रहते हो तुम।
पर प्यार का भंवरा कांटों,
के बीच आकर छू जाता है।
जिसके कारण तेरा रूप,
और भी निखार आता है।।
माना कि शुरू में कांटो से,
तकलीफ होती है।
जब भी छूने की कौशिश,
करो तो तुम चुभ जाते हो।
और दर्द हमें दे जाते हो।
पर साथ ही पाने की,
जिद को बड़ा देते हो।
और दिल के करीब,
तुम हमें ले आते हो।।
देखकर गुलाब और,
उसका खिला रूप।
दिल में बेचैनियां,
बड़ा देता है।
और अपने नजदीक,
ले आता है।
तभी तो रात के,
सपनो से निकालकर।
सुबह सबसे पहले,
अपने पास बुलाता है।
और अपना हंसता,
खिलखिलाता रूप दिखता है।।
मोहब्बत का एहसास,
कराता है गुलाब।
महफिलों की शान,
बढ़ाता है गुलाब।
शुभ अशुभ में भी,
भूमिका निभाता है गुलाब।
तभी तो रोशदिन भी,
मानवता है गुलाब।
इसलिए दिलों जान से,
चाहते है हम गुलाब।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
11/02/2020
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