जीना सिखा दिया*
विधा : कविता
अपने लफ्जो में,
मुझे लिखने वाले।
तुझे दिल जान से,
चाहते है हम।
दिल की धड़कनों में,
बसते हो तुम।
जब भी दिल मेरा,
तन्हा होता है।
तभी उतार जाते हो,
दिलकी गैहराईयों में तुम।।
अपने होने का एहसास,
कराते हो तुम।
हमें अपने पास,
बुलाते हो तुम।
मत हुआ करो उदास,
मेरे होते हुए तुम।
क्योंकि रबने बनाया है,
साथ जीने के लिए हमें।।
डूबते हुये इंसान को,
सहारा दिया तुमने।
अपने प्यार से,
उसे संभाला तुमने।
जब भी आये गम,
मेरी जिंदगी में।
ढाल बनकर खड़े हो गए,
गमो के बीच में तुम।।
कैसे शुक्रिया अदा करू
में तेरा,
तुमने जीना सीख दिया मुझे।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
13/02/2020
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