*क्या स्तर है*
विधा : कविता
गिरती हुई अर्थव्यवस्था,
को कौन बचाएगा।
मरते हुए इंसान को,
कौन बचाएगा।
यदि ऐसा ही चलता रहा,
तो देश डूब जाएगा।
और इसका श्रेय फिर,
किस को देओगे।।
जब जब भी अच्छा हुआ,
वो मेरी किस्मत थी।
अब बढ़ रही महंगाई,
तो ये किसी की किस्मत हुई?
और गिर रही है विश्व में साख,
तो इसका श्रेय किसको दोगें।
ये तो आप ही बताओगें,
या फिर इसका दोष भी,
ओरो पर लगाओगें।।
अब तक जो भी किया,
उनसब में फेल हो गये।
अच्छे दिनों की जगह,
बुरे दिनों में खुद ही फस गये।
हां देश में जाति कार्ड के,
जरूर ही हीरो बन गए।
और इंसानों को अपास में,
लड़वाने में सफल हो गये।।
बनी बनाई अर्थव्यवस्था का,
चकना चूर कर दिए।
और अपने बड़ बोलेपन से,
खुद ही हीरो बन गये।
कितने बद जुबान है
जिम्मेदार लोग,
जो जहर उगल रहे है।
और युवा पीढ़ी को
रास्ते से भटका रहे है।।
विदेशों में जाकर गांधी को,
अपना आदर्श बताते है।
और उसके नाम को,
वहां पर भुनाते है।
और उसकी के देश में,
उसे देशद्रोही कहते है।
और उसके हत्यारे का,
गुण गान करते है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
06/02/2020
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