संजय जैन (मुंबई ख्यालो में मिले वो*

संजय जैन (मुंबई


ख्यालो में मिले वो*
विधा : कविता


सवाल का जबाव 
सवाल में ही मिला मुझे ..।
वो शख्स मेरा ख़्याल था, ख़्याल में ही मिला मुझे।
फिर भी न जाने ये दिल,  
 क्यों यहाँ वहां पर भटकता है।
जबकि मुझे पता है।
मेरे ख्यालो का राजा मुझे, ख्यालो में ही मिलता है।।


गमे ख्यालो को हम,  
 वरदास कर नहीं पते।
फिर भी अपने प्यार का, 
इजहार कर नहीं पते।
डूब जाते है ऐसे,
सपनो की दुनियां में।
जहाँ से हम तैयाकर भी, वापिस नहीं आ पते।।


जब जब खुदा ने, 
मुझसे ख्यालो में पूछा।
क्या चाहते हो, 
तमन्नाये कहने लगी।
की बस मेरे ही ख्यालो में, उनके दीदार हो जाये।
और जब मुझे सही में, 
उन से प्यार हो जाये।
तो मेरा हम सफर बनकर,   
 मेरे साथ हो जाये।।


ख्यालो की बनाई दुनियां।
अब हकीकत में बदल गई।
जो ख्यालो में आता था, 
अब वो मेरा हमसफ़र बन गया।
मानो मेरी जिंदगी का, 
वो आधार बन गया।
अब तो साथ साथ जिंदगी को,
हंसते खिल खिलाते जी रहे है।
और ख्यालों की दुनियां से निकलकर,
हकीकत में जी रहे है।।


 जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई)
01/02/2020


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