*क्यो बुला रहे हो*
विधा : कविता
दिल की गैहराईयों,
से मुझे देखो।
सामने में नजर आऊंगा।
चाँद को पाने के लिए,
कही भी आ जाऊंगा।
बस दिलसे एक बार,
आवाज़ दो हमें।
मैं खुद तुम्हारे समाने,
हाजिर हो जाऊंगा।।
न हम गलत है,
और न हमारी सोच।
न तुम गलत हो और,
न ही में समझता हूँ।
ये तो दिल की बातें है,
जो हम दोनों करते है।
जब प्यार हुआ है तो,
निभाएंगे भी हम दोनों।
और जब मिलेंगे तो,
दिलके अरमान लुटाएंगे भी।।
होठों पे आज कल,
बहुत हंसी है।
तेरे दिल में भी
बहुत खुशी है।
कुछ तो तेरे दिल में,
हलचल मच रही है।
तभी मेरे को मिले को,
तुम बुला रही हो।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
26/02/2020
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