*एक चेहरा दिखता है*
विधा : कविता
जहाँ पर हम होते है,
वहां पर तुम नहीं होते।
जहाँ पर तुम होते हो,
वहां पर हम नहीं होते।
फिर क्यों रोज सपने में,
तुम मुझको दिखते हो।
न हम तुमको जानते है,
और न ही तुम मुझको।।
ख्बवो का ये सिलसिला ,
निरंतर चलता जा रहा।
हकीकत क्या है इसका,
नहीं है हमको अंदाजा।
किसी से जिक्र इसका,
मैं कर सकता नहीं ।
कही जमाने के लोग,
हमें पागल न समझ ले।।
रब से मै करता हूँ ,
सदा एक ही प्रार्थना।
सदा खुश वो रहे,
दुआ करता है संजय।
की तुम जो भी हो,
और रहते हो जहां पर।मिले सुखी शांति तुमको,
सदा अपने जीवन में।।
अनजाने में कभी मुझको,
अगर तुम मिल गए।
तो नज़ारे मत फेर लेना,
हमें अनजान समझकर।
कही रब को भी हो मंजूर,
हम दोनों का ये मिलाना।
की तुम दोनों बने हो बस,
एकदूजे के साथ रहने को।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई )
09/02/2020
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