सरिता सिंघई कोहिनूर वारासिवनी बालाघाट मप्र


कविता...


नारी तेरी यही कहानी
आँचल दूध नयन में पानी


जाना किसने अंतस तेरा
जीवन है साँसों का डेरा


जानी सबने तेरी जवानी
पोरुष जीवन है मनमानी


रुह मिलन है क्षणिक प्रबंधन
नश्वर काया भृमित से बंधन


प्रेम समर्पण जिसको माना
वो था देह मात्र गुथ जाना


मन का था सोंदर्य आलोकम्
नारी नर से कभी नहीं सम


भृमित सदा माया है करती
नारी देह सदा ही भरती


प्रेम परिधि है सम हो जाना
देह के बंधनों से छुट जाना


अंतर नाद में प्रियतम तेरा
अलख निरंजन साथी सबेरा


प्रेम को प्रेम जो माने नारी
झुकती चरणों दुनियां सारी


आ मेरी तू रुह में बस जा
नर नारायणी सा मन गस जा


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