सत्यप्रकाश पाण्डेय

सौंदर्य लालिमा लिए तन तुम्हारा
अनुपम अवर्चनीय रूप की धारा


लाज हया की लगती हो मारी सी
आनन उजास चन्द्र उजियारी सी


गढ़ा हो विधु ने मनोयोग से तुमको
तेरी रूप मोहिनी ने बांधा मुझको


शीतल धवल मयंक ज्योत्सना सी
कुसमित अधर लगो मनोरमा सी


करे है विमोहित लज्जा की लाली
शोभित करवलय अनंग मतवाली


मेरे हृदय में बसी है छवि तुम्हारी
माधुर्य प्रतिमा तुम पर रति वारी


लजे हिना देख के लोहित लाली
भावनाएं मेरी हुई प्रिय मतवाली


देख देख तुम्हें रजनीचर शरमाए
तेरा सौंदर्य तो जड़ चेतन को भाए


हसमुख गुलाब की कली मनोहर
बन जाओ सत्य की प्रिय धरोहर।।



सत्यप्रकाश पाण्डे


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