साधक.........
व्याकुल सा रहता अन्तर्मन में,
जब न होता दीदार तेरा।
घेर लेती है आशंकाएं मुझको,
जब मिलता न प्यार तेरा।।
तुम अरुणिमा हृदय गगन की,
मृगमरीचिका मेरा मन।
स्वातिनक्षत्र की बूंद प्रियतमा,
चातक जैसा मेरा मन।।
एक पल का भी विरह तुम्हारा,
होता सहस्राब्दी जैसा।
बिना पावस कृषक की भांति,
हर क्षण त्रासदी जैसा।।
तुम प्रेम पीयूष का कलश प्रिय,
और मैं प्यासा राहगीर।
रजनीश रहित गगन देख कर,
होती है कमोद को पीर।।
तुम हो जीवन आधार प्रेयसी,
तुम ही हो आभूषण मेरा।
तुम से ही है आलोकित हृदय,
तुम भव आकर्षण मेरा।।
मन मन्दिर का विग्रह हो तुम,
मैं प्रिय तेरा आराधक।
शान्त सरोवर अब मेरा हृदय,
बन गया मैं तो साधक।।
सत्यप्रकाश पाण्डेय🍁🍁
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