सत्यप्रकाश पाण्डेय

सपने में भी तुम मुझे रिझाने लगे हो
मोहिनी मुद्रा से मन बहलाने लगे हो


भवसागर में गोते खा रही जीवन नैया
डूबते पलों में तुम्ही याद आने लगे हो


पता नहीं मुझको क्यों भेजा हूँ जग में
फिर क्यों नहीं स्मरण दिलाने लगे हो


हो जीवन आधार अहसास होता मुझे
हे भक्त वत्सल क्यों दूर जाने लगे हो


सत्य का अर्पण समर्पण तुम्हारे लिए
फिर क्यों दर्शन को तरसाने लगे हो।


श्रीराधे गोविन्द🙏🙏🙏🙏🙏🌸🌸🌸🌸🌸 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...