सत्यप्रकाश पाण्डेय

कोई सोते से जगाता और दिल में समा जाता है
अपने हुश्न की खुशबू से मन को महका जाता है
वह चाहत कोई मेरी या फिर मन का भ्रम है
मैं जाना चाहता हूँ दूर वह पास चला आता है।


अपराजित समझता रहा और कब हार गया
चलाया कैसा तीर उसने जो दिल के पार गया
मत करना भरोसा सत्य इन रूप सौदागरों पर
चला गया रूप मदिरा पिला और हमें मार गया।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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