सत्यप्रकाश पाण्डेय

काहे का गरूर करे तू काहे अभिमान है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है


रूप रंग सौंदर्य देख के जो तू इतराबें है
ढल जाये जवानी फिर काम न आबें है
बन्द आँखों से देख चहुओर सुनसान है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है


आये बलशाली बहुत धूल में मिल गये
नामोनिशा न शेष जीवन उनके गल गये
हरि को तू भजले बन्दे होगा निर्वाण है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है


यहां नहीं कोई तेरा मतलब का संसार है
जीते जी के रिश्ते सारे और न आधार है
राधे कृष्ण रट ले मानव होगा कल्याण है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है।



श्रीराधे कृष्ण🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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