सत्यप्रकाश पाण्डेय

भाव अलंकृत कैसे हों
कैसे जीवन का परिष्कार
व्यंजनाएँ मधुमय बनें
दुष्प्रवृत्तियों का बहिष्कार


शुद्ध विचार हों अपने
अन्तर्मन सौम्यता परिपूर्ण
रहे जाग्रत विवेक सदा 
आध्यात्म भाव से संपूर्ण


त्याग भरी जीवन शैली
परोपकार का लिए संकल्प
ममत्व समत्व से पूरित
सुरभित मन दुःख न अल्प


दुखानुभूति से परे रहें
निर्मल चित्त हो उदार मना
हे करुणामय गोविंद
तव चरणों में है यही सना।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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