सत्यप्रकाश पाण्डेय

प्रीति की रीति


प्रीति की रीति बड़ी अनौखी,
करके प्रीति तो जग में देखो।
प्रीति से बड़ा न मंत्र जगत में,
किसी से प्रीति निभाकर देखो।।


कान्हा संग प्रीति हुई गोपिन की,
लोक लाज सब उनने तज दीन्ही।
श्याम रंग में वह ऐसी रंग गई,
पति प्रियतम की परवाह न कीन्ही।।


मधुवन और कालिंदी तट पर,
प्रीति पाग में वह ऐसी पग गई।
जन्म जन्मांतर के पाप काटकर,
कृष्ण प्रीति से भवसागर तर गई।।


प्रीति पराकाष्ठा अर्जुन की भी,
त्रिभुवन के पति भूले ठुकराई।
बनकर सारथी रथ हांक रहे वे,
कुरुक्षेत्र में मद्भगवत गीता गाई।।


जहां नारद जैसे संत विशारद,
यति सती और सुक सनकादि ।
नेति नेति कह जग जीवन बीता,
प्रेम विवस हो काटी गज व्याधि।।


प्रीति की रीति बड़ी अलौकिक,
तुम भजकर तो देखो  यदुराई।
कट जायेंगे यहां सारे भव बंधन,
प्रीति की राह चलो तो मेरे भाई।।


रास रचैया श्री माधव की जय🙏🙏🙏🙏🙏🌸🌸🌸🌸🌸


सत्यप्रकाश पाण्डेय🙏🙏


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