सौदामिनी खरे रायसेन मध्यप्रदेश अभी हारा नही

बर्फीली हवाओं में हो झमाझम वारिश।
या हो हाड़ कप कपाती शीतल शरद ।
जिस्म जला दे वह लू की हो लपटें ।
मेरे वतन का नौ जवा अभी हारा नही है।
अपने सारे सुखो की वह  देकर आहुति।
मेरे घरों को वह सुखचैन की नींद  देता।
कहीं कोई दुश्मन न सीमा के पास आए।
रात रात भर वह सीमा पर पहरा देता।
मेर वतन का सिपाही अभी हारा नही है।
अपने परिवार को छोड़कर अकेला अदम्य
वह करता मेरे वतन की धरा को धन्य ।
दीवाली दशहरा होली और राखी।
बैठ कर सीमा पर सबको मनाया 
मेरे वतन का सिपाही अभी हारा नहीं है।
अपने रक्त की एक एक बूँद से सींचता।
वो फौजी सिपाही मेरे वतन का गुलशन।
राष्ट्रप्रेम अपने हृदय में भीचता ।
कभी हारा नही है वो अभी हारा नही है।


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