बर्फीली हवाओं में हो झमाझम वारिश।
या हो हाड़ कप कपाती शीतल शरद ।
जिस्म जला दे वह लू की हो लपटें ।
मेरे वतन का नौ जवा अभी हारा नही है।
अपने सारे सुखो की वह देकर आहुति।
मेरे घरों को वह सुखचैन की नींद देता।
कहीं कोई दुश्मन न सीमा के पास आए।
रात रात भर वह सीमा पर पहरा देता।
मेर वतन का सिपाही अभी हारा नही है।
अपने परिवार को छोड़कर अकेला अदम्य
वह करता मेरे वतन की धरा को धन्य ।
दीवाली दशहरा होली और राखी।
बैठ कर सीमा पर सबको मनाया
मेरे वतन का सिपाही अभी हारा नहीं है।
अपने रक्त की एक एक बूँद से सींचता।
वो फौजी सिपाही मेरे वतन का गुलशन।
राष्ट्रप्रेम अपने हृदय में भीचता ।
कभी हारा नही है वो अभी हारा नही है।
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सौदामिनी खरे रायसेन मध्यप्रदेश अभी हारा नही
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