सीमा शुक्ला अयोध्या

ऊं नमः शिवाय!
है गंगधार शोभित कपाल,
कर से संहार त्रिशूल करे।
लिपटी भुजंग की माल कंठ 
भोलेशंकर सब शूल हरे।


मुख चन्द्र भाल ,तन ढके छाल,
अद्भुत श्यामल शिव की काया।
दर्शन से जाता  दूर काल,
जग मे फैली शिव की माया।


 जग सुनता तेरी महिमा को,
करते हो जब तुम शंखनाद।
सागर की लहरे झूम झूम,
कल कल करती रहती  निनाद।


देवों के हो तुम महादेव
तुम अजर अमर हो अविनाशी
हे दयावान कैलाश पती,
नभ जल थल के घट घट वासी।


 
ये धरती अम्बर डोल उठा,
थर थर कांपा हिम का आलय।
जब नयन तीसरा खोले हो
तब तब आई है महाप्रलय।


मुख मंडल से छूकर तुमको 
पावन गंगा का पानी है।
हे महादेव महिमा तेरी 
युग युग मे गई बखानी है।


जग भर को देकर दान सुधा,
निज कंठ गरल का पान किया।
जब जब चरणो मे शीश झुका,
जग जीवन का कल्यान किया।


सीमा शुक्ला।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...