सीमा शुक्ला

आया है फिर से ये बसंत ........
मुस्कान सभी के अधरों पर हो
 जीवन मे खुशिया अनंत, 
अनुराग का राग लिए हिय मे 
आया है फिर से ये बसंत ।..............
पतझड़ के वीराने उपवन 
हो गये पल्लवित सारे वन, 
धरती की अनुपम छटा देख 
हो उठा तृप्त ये अन्तर्मन ।
हरियाली ने कर दिया आज 
धरती का सुन्दर अलंकार 
मन मुदित हो रहा देख यहां
अवनी का अतुलित ये सिंगार ।
खिलखिला रहे खेतो के बीच, 
पीले पीले सरसो के फूल, 
सबके मन मे उम्मीद जगी, 
सब गये हृदय के शूल  भूल ।
खिल उठे ठूंठ से पेड़ो मे, 
बासंती सुन्दर से पलास
कह रहे छुपा अपने अंदर 
मत करो कही सुख की तलाश ।
ऋतुराज कह रहा हे मानव 
अब उठो हुआ हर दुख का अंत 
अनुराग का राग लिए हिय मे
 आया है फिर से ये बसंत ..................
हो गई ठिठुरती ठंड खतम 
गुनगुनी धूप से साज हुआ, 
भर दे उमंग जो सतरंगी 
उस फागुन का आगाज हुआ।
बौरों से है लद गई झुकी 
आमों के पेड़ो की डाली, 
बन हार धरा का शोभित है 
लड़ियो मे सरसो की बाली।
कानो मे मिश्री घोल रहा 
मीठे सुर मे कोयल का राग, 
चहुंओर सुगन्धित वायु चले, 
महकाये मन उड़-उड़ पराग।
मदमस्त हवाओ का झोंका, 
आकाश बीच उड़ती पतंग, 
जो नही पास है उन्हे बुलाने 
की मन मे जागी उमंग ।
मन लगे झूमने मस्ती मे, 
जब महक उठे ये दिग- दिगंत
अनुराग का राग लिए हिय मे 
आया है फिर से ये बसंत .............
           सीमा शुक्ल


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