श्याम कुँवर भारती

कविता  माँ दे दो दो रुपया  
“दो रूपया”  प्रकाशित काव्य संकलन से साभार 
माँ दे दो दो रुपया इंटेरबियू मे जाना है |
बिना टीकेट ट्रेन से चला जाऊंगा ,
दिन भर भूखा रह लूँगा,
माँ चप्पल है टूटी ,
किस्मत है फूटी ,
सिलानी है चप्पल ,
माँ दे दो दो रुपया इंटेरबियू मे जाना है |
चलाकर रिक्सा पिताजी ने ,
बीए पास करा दिया है ,
मै न चलाऊँगा रिक्सा ,
साहब बनूँगा ,
माँ मैंने फार्म भर दिया है ,
तू भूखी रही है |
मेरी किताबों के लिए ,
घरो मे बर्तने धोती रही है |
माँ दे दो आशीर्वाद ईंटरबियू  मे जाना है |
जब बनूँगा साहब ,
तुझे बर्तन धोने न दूंगा ,
पिताजी को रिक्सा चलाने न दूंगा |
उनकी टीवी का इलाज करवाऊँगा ,
ला दूंगा तुझे पावर चशमा ,
बनवा दूंगा टूटी छत ,
टूटी चारपाई भी न रहेगी ,
साड़ी मे पेबन्द मत लगाना 
महाजन के कर्जे भी चुका दूंगा,
माँ दे दो दो रुपया इंटरबियू मे जाना है |
श्याम कुँवर भारती


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