कविता माँ दे दो दो रुपया
“दो रूपया” प्रकाशित काव्य संकलन से साभार
माँ दे दो दो रुपया इंटेरबियू मे जाना है |
बिना टीकेट ट्रेन से चला जाऊंगा ,
दिन भर भूखा रह लूँगा,
माँ चप्पल है टूटी ,
किस्मत है फूटी ,
सिलानी है चप्पल ,
माँ दे दो दो रुपया इंटेरबियू मे जाना है |
चलाकर रिक्सा पिताजी ने ,
बीए पास करा दिया है ,
मै न चलाऊँगा रिक्सा ,
साहब बनूँगा ,
माँ मैंने फार्म भर दिया है ,
तू भूखी रही है |
मेरी किताबों के लिए ,
घरो मे बर्तने धोती रही है |
माँ दे दो आशीर्वाद ईंटरबियू मे जाना है |
जब बनूँगा साहब ,
तुझे बर्तन धोने न दूंगा ,
पिताजी को रिक्सा चलाने न दूंगा |
उनकी टीवी का इलाज करवाऊँगा ,
ला दूंगा तुझे पावर चशमा ,
बनवा दूंगा टूटी छत ,
टूटी चारपाई भी न रहेगी ,
साड़ी मे पेबन्द मत लगाना
महाजन के कर्जे भी चुका दूंगा,
माँ दे दो दो रुपया इंटरबियू मे जाना है |
श्याम कुँवर भारती
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
श्याम कुँवर भारती
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