स्नेहलता'नीर गीत बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं

स्नेहलता'नीर


गीत


 


बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं जाने कब से राह निहारूँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।
1
प्रीति- रीति इस जग की झूठी,देख -देख कर कल तक  रोई।
नैनों में छवि बसी तुम्हारी,नहीं सुहाता है अब कोई।


मोहनि- मूरत श्यामल- सूरत,निरख कोटि उर तुम पर वारूँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।
2
दर्शन के अभिलाषी नैना,इन नैनन की प्यास बुझाओ।
हाथ थाम कर मेरा कान्हा,भव सागर से पार लगाओ।


निरख निरख कर दर्पण मोहन,खुद को मैं दिन -रात सँवारूँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।
3
चंपा की कलियाँ चुन- चुन कर,रोज जतन कर सेज सजाती।
हलवा पूरी खीर बनाती,माखन रखती, दही जमाती।


आओ गिरिधर भोग लगाने,अश्रु धार से चरण पखारुँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।
4
रँगी तुम्हारे ही रँग माधव,लोग कहें पागल दीवानी।
हँसती है मुझ पर ये दुनिया,तड़प नहीं अन्तस् की जानी।


पथराये हैं नयन 'नीर' के,बोलो धीरज कितना धारूँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।


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