गीत
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*मापनी--16-16 मत्त सवैया छंद।*
बलवती कामना अंतर् की , *बंशीधर* मैं तुमको पाऊँ।
तुम मुरली मधुर बजाओ जब ,तब स्वर लहरी मैं बन जाऊँ ।
मैं राह निहार रही कबसे,अँखियाँ *कान्हा* पथराईं हैं
व्याकुल बेबस हूँ *आदिदेव* ,मन की कलियाँ मुरझाईं हैं
ये बीत न जाये उमर कहीं ,मैं सोच -सोच कर घबराऊँ।
तुम मुरली मधुर बजाओ जब ,तब स्वर लहरी मैं बन जाऊँ ।
आहट जब सुनती मैं कोई,लगता है *हरि* तुम आये हो।
प्रियतम *निर्गुण* अंतर्मन में,बस तुम ही तुम्हीं समाए हो।
आकर बैठो सम्मुख मेरे,मैं निरख -निरख कर मुस्काऊँ।
तुम मुरली मधुर बजाओ जब ,तब स्वर लहरी मैं बन जाऊँ ।
*घनश्याम* प्रीति पावन मेरी,पल- छिन नित बढ़ती रहती है।
सुन लोगे विनती एक रोज,उम्मीद हृदय में पलती है।
आओगे निश्चित *मनमोहन* ,मैं आस नहीं ये झुठलाऊँ।
तुम मुरली मधुर बजाओ जब ,तब स्वर लहरी मैं बन जाऊँ ।
रिश्ते -नाते जग के छोड़े , *मधुसुदन* हुई तुम्हारी हूँ।
दुनिया के बोल लगें पत्थर,फिर भी अब तक ना हारी हूँ।
मैं तुम्हें गहूँ ,सोना- चाँदी,मोती- माणिक सब ठुकराऊँ।
तुम मुरली मधुर बजाओ जब ,तब स्वर लहरी मैं बन जाऊँ ।
मन की इच्छा पूरन कर दो,फूलों -सी मैं खिल जाऊँगी।
वो घड़ी बता दो *गोविंदा* ,जिस घड़ी तुम्हें मैं पाऊँगी।
हर चीज जगत की नाशवान,तुम *अविनाशी* तुमको ध्याऊँ।
तुम मुरली मधुर बजाओ जब ,तब स्वर लहरी मैं बन जाऊँ ।
मैं टेर लगाती रात- दिवस , *गिरिधर* अब तो तुम आ जाओ।
मैं जनम- जनम की प्यासी हूँ ,तुम प्रेम -सुधा -रस बरसाओ।
तुम हाथ थाम लो हे *केशव* ,मैं गीत मिलन के फिर गाऊँ।
तुम मुरली मधुर बजाओ जब ,तब स्वर लहरी मैं बन जाऊँ ।
स्नेहलता'नीर'
रुड़की,हरिद्वार
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