सुबोधकुमार शर्मा शेरकोटी , गदरपुर उधम सिंह नगर 

विह्ववल होता अंतर्मन ,,,,,
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विह्ववल होता अंतर्मन,अविरल होती आंखे नम
कैसे धीर बधाएँ उनको ,देखे जो हत्या    निर्मम।।


हाथों की अभी मेहंदी   न छुटी
पहले ही कलाई - चूड़ियां टूटी।
स्वप्न सारे टूट गये क्षण  भर  में
माता -  ममता     रण ने लूटी।।
द्रवित हुआ अब  पिता  महा है
मातृभूमि को इक लाल दिया है
दूसरा लाल क्यो नही दिया ईश्वर
धैर्य ,विवेक की धारा अब टूटी
कैसे चुकाऊँ मै   माँ का ऋण।
विह्ववल होता अंतर्मन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,1


नन्ही गुड़िया  गुड़िया  ले देखे
नये नये खिलोने इकटक  देखे
स्व परितः चीत्कार  देख   कर
हाथ से सभी  खिलोने    फेंके।।
मॉ के गले लिपट रो रो     पूछे
क्यो शोर हुआ  है    घर बाहर।
आज पिता को  घर आना था
क्यो बेचैन हुआ ये  मेरा  मन।।
विह्ववल होता मेरा मन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,2


कंगन ,टीका,बिंदिया कुमकुम 
पायल की मधुरिम रुन  झुन
कलाई भाई की राखी  तरसे
चहुँ दिशि क्यो लगती गम सुम।
मॉ की आँखे ललना को देखे
पत्नी लाल का पलना    देखे
भाई मन मे यह निश्चय करता
पूर्ण करूँगा     में तेरा    प्रण ।
विह्ववल होता अंतर्मन,,,,,,,,,,,,,,,,,3


सुबोधकुमार शर्मा शेरकोटी ,
गदरपुर उधम सिंह नगर 
उत्तराखंड मो न0 9917535361


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