*कलम आज तू कुछ तो बोल*
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धरती में जो अन्न उपजाए
अक्सर भूख से मरता वो ।
क्यों रहता वो दीन-हीन यहां
जब सबका पेट है भरता वो ।
क्यों अन देखी होती उसकी
तू ही तो कुछ परतें खोल
*कलम आज तू कुछ तो बोल*
माँ ,बाप को कोई न पूछे
स्वयं पे है अभिमान यहां ।
हैं वो केवल खाली बोतल
लुढ़के हैं वो जहां तहां ।
उनको भी तो सबक सिखा
बखिया उनकी तू दे खोल ।
*कलम आज तू कुछ तो बोल*
संस्कारों की होली जल रही
मेरे देश में जहां तहां ।
इस तरह से कैसे होगा
मेरे देश का भला यहां ।
अपनी भाषा में समझा तू
सबकी आँखे फिर से खोल
*कलम आज तू कुछ तो बोल*
तूने ही इतिहास बदले हैं
तेरे दम से आज़ाद हुए ।
फिर क्यों मौन साधा है
सपने तेरे अब क्या हुए ।
अपने दिल के दर्द को तू
खुल के आज सबसे दे बोल ।
*कलम आज तू कुछ तो बोल*
चीख पुकार मची है देश में
एक दूजे की जान से खेलें
दिल हैं खिलौने इनके देखो
एक दूजे के दिल से खेलें ।
क्यों होते हैं कत्ल यहां पर
तू भी तो कुछ रहस्य खोल ।
*कलम आज तू कुछ तो बोल*
स्वरचित
🌹🙏 उत्तरांचली 🙏🌹
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