सुलोचना परमार उत्तरांचली

*कलम आज तू कुछ तो बोल*
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 धरती में जो अन्न उपजाए
अक्सर भूख से मरता वो ।
क्यों रहता वो दीन-हीन यहां
जब सबका पेट है भरता वो ।
क्यों अन देखी होती उसकी
तू ही तो कुछ परतें खोल


*कलम आज तू कुछ तो बोल*


माँ ,बाप को कोई न पूछे
स्वयं पे है अभिमान यहां ।
हैं वो केवल खाली बोतल
लुढ़के हैं वो जहां तहां  ।
उनको भी तो सबक सिखा
बखिया उनकी तू दे खोल ।


*कलम आज तू कुछ तो बोल*



संस्कारों की होली जल रही
मेरे देश में जहां तहां ।
इस  तरह से कैसे होगा
मेरे देश का भला यहां  ।
अपनी भाषा में समझा तू
सबकी आँखे फिर से खोल



*कलम आज तू कुछ तो बोल*



तूने ही इतिहास बदले हैं
तेरे दम से आज़ाद हुए ।
फिर क्यों मौन साधा है
सपने तेरे अब क्या हुए ।
अपने दिल के दर्द को तू
खुल के आज सबसे दे बोल ।


*कलम आज तू कुछ तो बोल*



चीख पुकार मची है देश में
एक दूजे की जान  से खेलें
दिल हैं खिलौने इनके देखो
एक दूजे के दिल से खेलें ।
क्यों होते हैं कत्ल यहां पर
तू भी तो कुछ रहस्य खोल ।


*कलम आज तू कुछ तो बोल*



स्वरचित


🌹🙏 उत्तरांचली 🙏🌹


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