सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
          *"सहारा"*
"सोच बन गई फिर जग में,
जीवन का एक सहारा।
सोचे न सोचे फिर यहाँ,
इससे ही तो वो हारा।।
हार ही में उसकी यहाँ,
मिले जीत का ईशारा।
समझे ना समझे उसको,
साथी किस्मत का मारा।।
अनचाही चाह संग फिर,
जो फिरता मारा-मारा।
भटकनो में संग भटके,
कौन-बनता फिर सहारा?"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः            सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          11-02-2020


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