सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"तड़पन"*
"घुटन मन की जीवन में यहाँ,
कब-तक संग रह पाती है?
पा कर नेह का आँचल फिर,
क्यों-सभी कुछ कह जाती है?
मान मर्यादा जीवन की,
साथी जो अक्षुण रख पाते है।
दुर्गम जीवन पथ पर वही,
पल-पल संग चल पाते है।।
अपने नहीं जग में फिर भी,
जो अपने बन जाते है।
अपनत्व के अहसास से फिर,
अपनो को तड़पाते है।।"


    सुनील कुमार गुप्ता


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