सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
        *"मानव"*
"कर अपमान अपनों का यहाँ,
वो पाषणो को पूजते।
ऐसे मानव जग में तो फिर, 
पाषण हृदय कहलाते।।
मानवता का मोल जगत में,
कहाँ- पहचान वो पाते?
मानव हो कर भी वो तो फिर,
मानवता को लज्ज़ाते।।
कर्मगति जग में उन्हे पल पल,
क्या-क्या-रंग दिखाती?
अपनों को बेगाना वो तो ,
यहाँ पल में बना जाती।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         09-02-2020


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