सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
         *"साथी"*
"जग में छाया बंसत साथी,
क्यों-आई गम की छाया?
ढल जाने दो गम के आँसू,
खिल उठेगी कंचन काया।।
मिलकर साथी-साथी उनसे,
महक उठे जीवन सारा।
मोह माया के बंधन संग,
अपनो से जीवन हारा।।
हारे जो अपनो से साथी,
पाये सुख जीवन धारा।सुख-दु:ख इस जीवन में साथी,
दे जाते मन को सहारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता


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